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गाना सुनने वाले रहते है खुश हमेशा

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गाने कभी खुशी में साथ देते है तो कभी गम में साथ देते है। मौका चाहे खुशी का हो या किसी से बिछुड़ने का, गाने के बिना सब अधुरा सा लगता है। बॉलिवुड फिल्मों की तो लाइफलाइन हैं गाने। समय के साथ बॉलीवुड में म्यूजिक का ट्रेंड बदल रहा है। आजकल थिरकने और झूमने वाले गानों का ट्रेंड है, जिस वजह से दिल को छु जाने वाले गीत-संगीत कहीं छूटता-सा दिखने लगा है। गीत-संगीत के बदलते स्वरूप पर हमारी आक की स्टोरी

रेडियो मिर्ची की 2015 की टॉप लिस्ट में बेबी डॉल मैं सोने दी… डीजे वाले बाबू… अभी तो पार्टी शुरू हुई है… ये कुछ ऐसे गाने हैं, जो छाए रहे थे । यही नहीं, पार्टी तो बनती है… तुंग-तुंग बाजे… लोचा-ए-उलफत हो गया… लंदन ठुमकदा… जैसे ढेरों गानों ने लोगों को पूरे साल खूब नचाया।

आजकल बेबी को बेस पसंद है… काला चश्मा… जैसे गाने लोगो के सिर चढ़कर बोल रहे हैं। यह फेहरिस्त बताती है कि धीमी रफ्तार वाले गानों के मुकाबले फास्ट बीट और थिरकाने वाले गाने ज्यादा हिट हो रहे हैं। तो क्या इसका मतलब म्यूजिक बदल रहा है? धीमी गति और सैड सॉन्ग का जमाना गुज़र गया है? अगर ऐसा है तो इसकी वजह क्या है?

तेजी से छाते हैं, पर टिक नहीं पाते हैं

फास्ट सॉन्ग में हैपिनेस कोशेंट होने के कारण हम फास्ट सॉन्ग जल्दी नोटिस कर लेते है। लेकिन फास्ट सॉन्ग ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते हैं। जबकि सैड सॉन्ग धीरे-धीरे दिल में उतरते हैं और लंबे समय तक वहीं बने रहते हैं।’
गाना एक, धुन दो

आजकल के युवा युवा खुशी और मस्ती के किसी पल को गंवाना नहीं चाहते। गाने भी इस खुशी को पाने का जरिया हैं। जब युवा फास्ट सॉन्ग सुनते है तो उनके मन में खुशी की लहर उठती है। शायद इसलिए सैड सॉन्ग लिखने का चलन बॉलीवुड से हटता जा रहा है। अगर किसी गाने में दुख या दर्द का भाव होता भी है तो म्यूजिक से उसे हैपी सॉन्ग में बदलने की कोशिश होती है। इसके अलावा एक नया ट्रेंड भी देखने को मिल रहा है। आजकल एक ही गाने के दो वर्जन बन रहे हैं, एक नॉर्मल और एक रिप्राइज (सैड) जैसे कि ‘बजरंगी भाईजान’ का ‘तू जो मिला…’ और ‘सुल्तान’ का ‘जग घुम्या…’। इससे सुनने वालों को नॉर्मल और स्लो, दोनों तरह के गाने का मजा मिल जाता है।

गीतकारों पर दबाव
वैसे खुशी एक ओवरेटिड चीज है। समाज में खुशी है तो दर्द भी है । इसी तरह गानों में भी हर तरह का भाव होता है। आज भी सैड सॉन्ग लिखे और सुने जा रहे हैं। जैसे ‘सुन रहा है ना तू, रो रहा हूं मैं…’, ‘लुका-छुपी बहुत हुई…’, ‘मैं कभी बतलाता नहीं…’ और भी ऐसे कई गाने है जो लोगो के दिल में बसे हैं। गीत या संगीत अगर अच्छा है, तो मन को खुश करता है। अगर अच्छा नहीं है तो सुनकर खराब ही लगता है। अगर हैपी या सैड की बात को छोड़ दे तो इसमें कोई शक नहीं है कि गानों का स्टैंडर्ड गिरा है, फिर चाहे वह म्यूजिक हो या बोल।

लेखकों पर कई तरह के दबाव होना भी गीतों के बोलों में आ रही गिरावट की एक वजह है। मशहूर शायर कैफी आजमी ने एक बार कहा था कि गाने लिखना कब्र में लाश को फिट करने जैसा है। कब्र पहले खोद दी जाती है और लाश को उसमें एडजस्ट करना होता है। इसी तरह आजकल धुन पहले बना ली जाती है और शब्द बाद में फिट किए जाते हैं

हालाँकि, म्यूजिक को लेकर हर किसी की अपनी पसंद होती है और समय के साथ यह बदलती भी है। लेकिन इस बात में कोई सक नहीं है कि म्यूजिक हमेशा बना रहेगा, यह तय है!

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