क्या राजनाथ को ऐसा कहना चाहिए….
08/08/2016
भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के इस्लामाबाद दौरे में दिखी तल्ख़ी पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में हर तरफ़ छाई हुई है.
‘जंग’ में लिखा गया है कि गृह मंत्रियों की बैठक इस्लामाबाद में सार्क देशों के दहशतगर्दी, समुद्री अपराध, साइबर क्राइम, अवैध ड्रग कारोबार और महिला और बच्चों की तस्करी जैसे अहम मुद्दों पर बुलाई गई थी. अख़बार के मुताबिक़ विषय से उलट भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के इशारे पर अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों ने कॉन्फ़्रेंस को पाकिस्तान पर इल्ज़ाम लगाने के मौक़े में परिवर्तित कर दिया.
अख़बार लिखता है कि पाकिस्तानी गृह मंत्री निसार अली ख़ान ने आरोपों का सबकी बोलती बंद कर देना वाला जवाब दिया और कश्मीर के जनता के अपने भविष्य के बारे में ख़ुद से फ़ैसला करने के अधिकार का मज़बूती से बचाव किया. ‘औसाफ़’ लिखता है कि सच तो ये है कि राजनाथ सिंह चौधरी निसार अली ख़ान का सच बर्दाश्त नहीं कर सके और सार्क कॉन्फ़्रेंस का आख़िरी सेशन और लंच छोड़ कर चले गए. अख़बार के मुताबिक़ भारतीय गृह मंत्री में इतना भी होसला नहीं था कि वो एयरपोर्ट पर किसी पाकिस्तानी मीडिया से बात कर सके. अख़बार लिखता है कि पाकिस्तानी गृह मंत्री ने भारतीय गृह मंत्री राजनाथ को जबाव दे कर पुरे कश्मीरियों और पाकिस्तानियों का दिल जीत लिया. सार्क गृह मंत्रियों की बैठक को राजनाथ सिंह के द्वारा बीच में ही छोड़ कर चले आने पर रोज़नामा ‘एक्सप्रेस’ ने संपादकीय लिखा है- भारतीय गृह मंत्री राजनाथ की अशोभनीय हरकत.
अख़बार का मानना है कि ये सब सोची समझी रणनीति थी और इसका मक़सद कश्मीर के हालात से सबका ध्यान हटाना था. अख़बार का तो ये भी कहना है कि राजनाथ सिंह को ऐसा करने के लिए पहले से सलाह दी गयी थी, इसलिए तो उन्होंने सपष्ट केह दिया था कि किसी पाकिस्तानी नेता से मिलने और अलग से बातचीत करने का उनका कोई इरादा नहीं है.
‘दुनिया’ लिखता है कि ये कैसे मुमकिन है कि भारतीय सेना पैलेट गनों से निहत्थे कश्मीरियों पर हमला करती रहे, उन्हें मारती रहे, घायल करती रहे और उनकी आंखों की रोशनी छीनती रहे और इसका विरोध भी न हो. अख़बार लिखता है कि अगर भारत को सच से इतनी ही नफरत है तो फिर भारत खुद कि तरफ ऊँगली उठना वाला कम ही ना करे.
अख़बार लिखता है उम्मीद तो ये थी कि इस्लामाबाद में गृह मंत्रियों की बैठक से दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में मदद मिलेगी लेकिन हठधर्मी ने एक सुनहरे मौक़े को गंवा दिया गया. ‘नवा-ए-वक़्त’ ने पाकिस्तान को दी जाने वाली अमरीका द्वारा 30 करोड़ डॉलर की सैन्य मदद रोके जाने पर संपादकीय लिखा है.
अख़बार के मुताबिक़ अमरीका ने यह कह कर मदद रोकी है कि पाकिस्तान ने हक़्क़ानी नेटवर्क और अफ़ग़ान तालिबान के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की है, लेकिन ये भारत के कहने पर पाकिस्तान को नाराज़ करने का एक और बहाना है.
अख़बार कहता है कि पाकिस्तान की मदद न करने पर दोनों देशों के बीच तनाव और इसका नुक़सान अमरीका और पाकिस्तान को बराबर होगा. रोज़नामा ‘ख़बरें’ लिखता है कि अमेरिका द्वारा मदद रोकने से दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ ऑपरेशन प्रभावित होने का अंदेशा है.
अख़बार लिखता है कि रक्षा विश्लेषक अमरीका के इस फ़ैसले को पाकिस्तानी सेना के लिए झटका मान रहे हैं लेकिन पाकिस्तान को अमरीका से डरने और उसके दबाव में आने के बजाय अपने हितों को आगे रखने की जरूरत है, यही पुकार वक़्त की है. भारत कि ओर रुख करे तो राजनाथ सिंह का पाकिस्तान दौरा चर्चा में है, पर यहां पाकिस्तान की नीयत पर सवाल उठाए गए हैं. ‘सियासी तक़दीर’ कहता है कि राजनाथ सिंह के पाकिस्तान पहुंचते पर उनके द्वारा विरोध प्रदर्शनों के नाम पर जो बदतमीज़ी की गई, उसकी जितनी निंदा करे, उतना कम है.
अख़बार ने भारत प्रशासित कश्मीर में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की आलोचना करते हुए ताज़ा अशांति को आज़ादी का संघर्ष बताया. अख़बार में लिखे गए पनामा लीक्स में नवाज़ शरीफ़ के परिवार का नाम आने पर विपक्ष ने उनके ख़िलाफ़ मुहिम शुरू कर दी है. जिसे देखते हुए वो लोगों का ध्यान सिर्फ़ कश्मीर का मुद्दा उछालकर ही भटकाना चाहते हैं. ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने ‘नवाज़ का फिर कश्मीर राग’ शीर्षक से लिखा है कि उन्होंने कई देशों में पाकिस्तानी राजनयिकों से कहा है कि वो दुनिया को ये संदेश दें कि कश्मीर मसला भारत का अंदरूनी मामला नहीं है.
अख़बार लिखता है कि पाकिस्तान कश्मीरियों को हिंदुस्तान से अलग करने की कोशिश कर रहा है लेकिन कश्मीरी जनता इस बात से अच्छी तरह परिचित है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में लोग कितने बुरे हाल में हैं. अख़बार लिखता है कि कश्मीर नीति पर भारत को फिर से विचार करने की ज़रूरत है ताकि भोले भाले कश्मीरियों को कोई ताक़त गुमराह न कर सके.
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